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पिड़ान्दी माया

गढवाली कविता पिड़ा मेरी लगदी नी कुछ त्वी ता किले नी दिखेन्दी ज़रा मैं त छू निर्भे,वक़्त कू मार्यू छू मी लुकि लुकि रुवेन्दी ज़रा मी ता बण्यु पासा इ खेल कू जेमा जीतण नी मिन कभी कौथिग जुग बैठी लगिन यख प्रेम कू सचे कि माया दिखण नी मिन कभी मेरा होण कू च नी क्वी असर कैल भी नी पड़ी दिनी आँखि जैका बिना नी लगदु पराण वैल भी छोड़ी दिनी माया की साँखी यकुल सी च मेरी यू आँखि नी च कैकु भी दगडू मी तेई मेरा त चली गिन सब संगी छोड़ी नी लगदु क्वे अपणु मी तेई कन के थामण ये हिया को गाँठु जैल मेरी जिकुड़ी बड़ी रुलाई हे!देवा त्वेन सब का बाद किले यी पीडान्दी माया सी बणाई अभिषेक सेमवाल