ग्यारहवीं कक्षा
“चल न भाई जल्दी,वो आ गयी होगी....यार पहले ही दिन इंतजार कराना सही नहीं लगेगा।" ये शब्द थे अंश के ,वो मुझ से बहुत नाराज लग रहा था और होना भी लाजमी सा था क्योंकि आज उसकी पहली मुलाकात थी ‘उसके साथ'।इस मुलाकात के लिए क्या क्या नहीं किया था उसने ,जिस स्कूल में हम लोग थे वहां एक लड़की और लड़के की मुलाकात के कई मायने होते हैं।क्योंकि एक मुलाकात के लिए कुछ हमें करना पड़ता था वो शायद ही किसी ने किया होगा। मैंने अंश की बात सुनी तो मेरे दिमाग में पिछले नौ दस महीनों की पूरी कहानी ताजा हो गई और ये कहानी थी अंश की। कहीं न कही आप सब को ये तो लग ही गया होगा कि ये एक प्रेम कहानी हैं और प्रेम कहानी भी एक ऐसे स्कूल की जहाँ लड़के लड़की के प्यार तो दूर की बात दोस्ती पर भी सख्त पहरे लगे रहते हैं। ये जो प्रकरण है वो शुरू बहुत पहले हो गया था जब अंश नवीं कक्षा का एक उदयमान विद्यार्थी था और इस कहानी की नायिका मतलब भावना थी जो अंश से दो क्लास जूनियर मतलब सातवीं में थी, उस वक़्त हमारे दोनों मुख्य पात्र बिल्कुल बचपने में थे तो अंश का प्रस्ताव भावना समझ नहीं पाई या उसके आस...