तुम्हारी हथेलियां
तुमने जब प्रेम वश पीछे से आकर मेरी आँखों पर हाथ रख लिए अपने वैसे तो ये तुम्हारा बचपना था मगर मेरे लिए ऐसा था कि जैसे तुम कह रही हो “मत देखो कुछ भी मत देखो दुनिया को मत देखो समाज को मत देखो रूढ़ियों को मत देखो बेढंगे रिवाज को बस तुम देखो आँखे बंद कर मुझे बस महसूस करो मेरे हाथों का स्पर्श” सच मे तुम्हारी हथेलियों में कोई तिलिस्म जरूर था तुमने हर ली थी सारी बेचैनियां मेरी सारी उलझनें काफूर हो गयी थी उस एक पल में तुमने जब प्रेम वश पीछे से आकर मेरी आँखों पर हाथ रख लिए अपने .. .. © सेमवाल जी नवोदय वाले