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चाय की प्याली

  “हाँ ये चाय रख दो यहाँ पर” मैंने छोटू को  मेज की तरफ इशारा करते हुए कहा, ये वक़्त शाम की चाय का था और पिछले कुछ दिनों से एक नया लड़का चाय देने आ रहा था,यूँ तो चाय उसी टपरी की थी,पर स्वाद और जायका बदल गया गया था,पहले एक लड़की वहाँ चाय बनाती थी और अब शायद उसका भाई। मैं इस शहर में एक साल से रह रहा था,मैं एक छोटे से कस्बे का जोशीमठ का रहने वाला था और श्रीनगर जैसे बड़े शहर में पिछले एक साल से जल निगम में सहायक क्लर्क के पद पर था,यूँ तो काम कुछ ज्यादा था नहीं पर मेरे लिए बहुत जरूरी था, क्योंकि ये मेरी पहली नौकरी और दूसरी बात ये कि मैं घर से दूर निकल गया था जो कि मैं हमेशा से चाहता था। मेरी आँखों में मेरे ऑफिस का पहला दिन चल रहा था ,जब मैं नई जगह नई नौकरी को लेकर उत्साहित और थोड़ा सा नर्वस भी था और अपने पहले ही दिन कुछ ऐसा करना चाहता था कि मेरा मन इस नई जगह में रम जाए,यूँ तो मैं कोई दक्षिण भारतीय फिल्मों का कोई फंतासी नायक तो था नहीं कि कुछ असाधारण कार्य कर दूं और सबकी नजरों में हीरो बन जाऊं.......मुझे तो खुद के लिए कुछ वजह तलाशनी थी जिसके बूते मैं एक नए और अपेक्षा कृत बड़े शहर में रह ...