जनवरी की बारिश
बाहर बारिश हो रही थी, जनवरी की बारिश ,वैसे आजकल मौसम बड़ा ही ठंडा था और बारिश ने तो हाल और बुरे कर दिये थे, मैं अपने कमरे में बैठा हुआ खिड़की से बाहर देख रहा था ,मैं दूसरी मंजिल पर रहता हूँ मेरे कमरे के आगे एक छत है जिस से पूरे कस्बे का दृश्य साफ दिखता है, और नदी पार तक सारा दृश्य बारिश के बीचों बीच मैं अपने कमरे में बैठा देख रहा था ।
तभी क्या देखता हूँ अंतरा बाहर बारिश में जा रही है, ये लड़की बारिश को देखकर पागल सी हो जाती थी जब कभी बारिश होती तो चिनखी(बकरी का छोटा सा बच्चा, जो बहुत प्यारा होता है) की तरह भा बारिश में उछल कूद करने लगती थी, वो मेरे बगल वाले कमरे में रहती थी, अक्सर हम दोनों छत में बैठे हुए रहते थे जब भी धूप रहती थी तो इस वक़्त तो बिल्कुल अलग हाल थे। अंतरा बारिश में कुछ और ही बन जाती थी उसके अंदर का अंतर्मुखी सा छोटा बच्चा गायब सा हो जाता था ओर एक शैतान चंचल और नटखट सी अंतरा बारिश में भीगते हुए मेरे सामने थी, वो एक दम चिनखी लग रही थी कभी इस कोने खेल रही थी कभी उस कोने पर , उछल कूद में व्यस्त । मैं उसको यूँ देखता ही रह गया , और सब कुछ भूल गया जैसा कि अक्सर होता था उसकी साँवली सूरत उसके आँखों की निश्छलता देखकर मैं तो सब कुछ भूल सा जाता था जैसा कि इस वक़्त हो गया था।
तभी मैं ख्यालों की धुंध से बाहर आया और मेरा ध्यान भीगती हुई अंतरा पर गया ,मैंने एक जैकेट पहना और छाता लेकर बाहर चला गया, उसके पास गया और बोल-“अरे यार तू पागल तो नहीं हो गयी है ,ठंड देख रही है कितनी ज्यादा है, तू अंदर चल तूने बीमार हो जाना है ” उसने मुझे एक पलट कर देखा तो उसकी आँखो में खुशी साफ दिख रही थी, वो बोली “ लाटे जब तू मेरे साथ है तो मैं अगर बीमार हो भी गयी तो तू मेरी देखभाल कर लेगा.....है ना " उसका ये कहना जायज था मैं बिल्कुल उसकी देखभाल करता लेकिन इस वक़्त तो मैं उसे बीमार ही नहीं होने देना चाहता था, मैने उस से कहा “ तू क्यों बच्चों के जैसे जिद कर रही है ,देख ना कितनी ठंड हो रही है बारिश में भीगने से क्या होगा??" वो शायद इस सवाल के लिए तैयार थी वो बोली -“ देख यार लाटे , वो सामने देख पूरा चौरास दिख रहा है ना पहाड़ देख गांव देख , पेड़ देख सब कुछ साफ साफ दिख रहा है ना और दिन तो धुंध और कोहरे के कारण कुछ दिखता ही नहीं है आज देख पुरी प्रकृति सामने है हमारे , जब तक हम प्रकृति को महसूस नहीं करेंगे तो हम कैसे उसके सारे राज खोल पाएंगे कैसे हम प्रकृति की सब अच्छी बातों को अपने अंदर समेट पाएंगे इसलिए मैं तो बारिश में खड़ी होकर सब कुछ महसूस कर रही हूँ.....और हाँ मैं तो कह रही हूँ की तू भी महसूस कर " ये कहकर उसने मेरे हाथों से छाता छीनकर बंद कर दिया अब हम दोनों ही जनवरी की बारिश में भीग रहे थे उसने अब आँखों से जैसे मुझे इशारा किया की समझ गया मैं क्या कह रही हूँ, वैसे मैं समझ गया था ।
मैंने उसके हाथों की उँगलियों के बीच अपने हाथों की उँगलिया फंसा दी और उसके बगल में खड़ा होकर सामने देखने लगा ,उसने मुझे आश्चर्य से देखते हुए कहा “ ये क्या कर रहा है तू " मैंने कहा -“ मैं प्रकृति को महसूस कर रहा हूँ"
© सेमवाल जी नवोदय वाले
Waah waah
ReplyDeleteवाह सेमवाल जी।
ReplyDeleteLegendary semwal ❤️
ReplyDeleteउम्दा रचना !!
ReplyDeleteBdiya❤
ReplyDeleteGjb bhai ji❤️
ReplyDeleteGjb ladke ❤
ReplyDeleteWaah waah semwal bhai kya baat h.🥰
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