PLAYLIST (story)

 

“जी सर,जैसा आपने कहा बिल्कुल वैसे ही होगा"।मैंने कहा तो मेरे बॉस ने मुझे अविश्वास की नजरों से देखा जैसे उन्हें भरोसा न हो रहा हो,और होता भी कैसे मैं पिछले सात असाइनमेंट जो पूरे नहीं कर पाया था।
  मैं बॉस के केबिन से बाहर निकला ही था कि मुझे मेरे साथी अरविंद ने आवाज दी -“अबे यार चल ना लंच टाइम हो गया हैं, चलते है कैंटीन"।ये सुनकर मैंने आफिस की वाल क्लॉक पर सरसरी निगाह डाली तो वो दिन के 1:30 बजा रही थी।

अभी तो सुबह अलार्म बजा था मैं बड़ी आधी अधूरी नींद छोड़कर जबरदस्ती तैयार हो कर ऑफिस आया हूँ और इतनी जल्दी ये वक़्त बीत गया कुछ काम भी नहीं कर पा रहा हूं ,ये क्या हो रहा है मुझे आजकल मैं क्यों वक़्त और अपनी जिंदगी के बीच समन्वय नहीं कर पा रहा हूँ

“ओ मेरे गरीबों के सस्ते से राहत इंदौरी , कहाँ खो गया फिर चल ना जल्दी,फिर बोलेगा वक़्त नहीं मिलता कुछ करने को" अरविंद ने मुझे खींचते हुए बोला और मैं उसके साथ चल पड़ा कैंटीन की तरफ ,वहां पहुँच कर रोज की तरह हमने खाना शुरू किया,लेकिन मुझे ख्यालों ने फिर घेर लिया।

यार ये हो क्या रहा है मुझे,मैं पागल हो रहा हूँ.... सुबह से काम में लगा  हूँ फिर भी कोई काम पूरा नहीं कर पा रहा हूँ...... अनु भी आजकल कुछ नाराज सी लग रही है....किट्टी भी मेरे से कटी कटी रहती हैं..... मैं क्या इतना खराब हूँ .....किसी को मेरे होने न होने से कोई फ़र्क़ पड़ता हैं....
     बचपन से ही कोई समझ नही पाया या यूं कहूँ की किसी ने समझने की कोशिश ही नही की .....माँ पापा ने हमेशा जिम्मेदारी ही लादी है मुझ पर कभी साथ बैठे ही नहीं मेरे साथ ....और अभी तक बस जिम्मेदारी ही निभा रहा हूँ......और  आगे भी वही करता रहूंगा,ये क्रम क्या टूटेगा कभी भी नहीं आजतक तो नही टूट पाया.......यर उलझन कब खत्म होगी कुछ नहीं पता कब मुझे कोई समझ पायेगा और बोलेगा  कि मैं हूं ना तेरे साथ ....कब???

   “यार तू फिर डूब गया सोच में ,अब किसकी याद आ रही है"अरविंद ने मेरी सोच का पूरा चक्र तोड़ दिया,मैं एकदम मानो नींद से जग गया....“अरे नहीं यार ,मैं यहीं हूँ....क्या करूँ यार आजकल सब चीजें पटरी से नीचे उतरी हुई हैं और सही से सोये हुए एक अरसा सा बीत गया है",“ओ मेरे उजड़े चमन ये बीमारी है ना कि कोई मानसिक समस्या और सोने के बारे में तू बात मत कर यार तुझे कॉलेज से जनता हूँ तू तो कुम्भकर्ण को चुनौती देने वालो में से है, चल कोई नही मैं बताता क्या करना आज रात को अच्छे से स्लो वाले सैड सॉन्ग की एक प्लेलिस्ट बना लेना और और सुनते सुनते सो जाना,यू नो स्मार्ट प्रोब्लेम्स रिक्वायर्ड स्मार्ट सलूशन।"
   प्लेलिस्ट जैसे ही अरविंद ने ये कहा मेरे सामने जैसे कोहरा छा गया या यूं समझ लीजिए यादें एकदम से पलट गई।

“ओय!मैं देख रही हूं जब से तेरे बगल पर रहने आयी हूँ तेरे कमरे की लाइट रात भर ऑन रहती है तू शायद वॉचमैन रहा होगा पिछले जन्म में रात भर जग कर दिन भर सोता रहता है, क्यों जरा मुझे भी बता”अंतरा एकदम से भरभरा गयी मुझ पर,मैं थोड़ा सा झेंप गया क्योंकि आजतक किसी ने भी ऐसा कुछ नहीं पूछा था ,की तूझे नींद क्यों नहीं आती है वैसे तो ये आम सी दिखने वाली समस्या लगती है पर इस समस्या के पीछे बहुत किस्म के मानसिक तनाव विचारों का ज्यादा ही विचरण जिम्मेदार होता है जोकि अक्सर लोग नहीं देख पाते या सच कहिये तो देखना ही नहीं समझना ही नहीं चाहते है, लेकिन आज अंतरा ने मुझ से ये पूछ कर मुझे झकझोर कर रख दिया ।वो मेरी क्लासमेट थी बगल पर रहती थी तो पड़ोसी भी हुई ,अक्सर वो मेरे लिए चाय बना देती थी और इस बात पर तो मैं उसे अपना मान बैठा था वैसे थी वो मेरे जैसे ही मतलब अंतर्मुखी ,अपने आप में खोई रहती मुझे लगता है मैं ही अभी ऐसा एक कोई था जिससे वो खुलकर बात करती थी क्योंकि ज्यादा बात करते हुए मैने सुना नहीं उसे कभी,शायद घर वालों से भी बात नहीं करती थी या घर वाले ही उससे बात नहीं करते थे,तो मैं उसे कभी कभी दया तो कभी कभी डर की नजरों से देखता था डर इसलिए कि वो जब एकबार शुरू होती थी तो बस क्या कहना,कभी कभी सोचता हूँ एक अंतर्मुखी लड़की कैसे इतना कुछ बोल सकती है पर सिर्फ मुझ से ऐसा क्यों??

“बोल भी दे अब कुछ,तब से सोच रहा है खड़े खड़े !”उसने मुझे बिस्तर पर बैठे बैठे पूछा मैं एकदम से ख्यालों से बाहर निकल कर आया और बोला “अरे यार कुछ नहीं पता नहीं रातों को नींद क्यों नहीं आती ,हम होस्टल वाले ऐसे ही रहते ना कोई बड़ी बात नहीं मैं रात की नींद दिन में पूरी कर लेता ना,तू चिंता मत कर और आज से लाइट भी बंद कर दूंगा ठीक है"
  “देखते हैं हम भी कितना सोता तू,शायद मुझे ही कुछ करना पड़ेगा अब तो”ये कहकर वो भी ख्यालो में डूब सी गयी,इधर मेरे ख्याल भी चल रहे थे ,अंतरा थी तो सांवली सी पर पता नहीं क्यों मुझे अपने वश में कर लेती थी एकदम शान्त सी हंसी ,गालों पर पड़ने वाले डिंपल उसे और भी प्यारा बना देते थे और बोलना उसका मुझे बहुत  प्यारा लगता था वैसे ज्यादा तर वो मुझे डाँटती रहती या गालियां ही देती रहती पर वो भी सिर्फ मुझे,ये मुझ जैसे लड़के के लिए बहुत बड़ी बात थी क्योंकि मैं उन लोगों में से था जो जानते तो बहुत से लोगो को थे पर किसी के साथ आसानी से जुड़ते नहीं थे,और अगर जुड़ गए तो उसे अपना सब कुछ मान लेते थे,वैसे अंतरा के मामले में मैंने कभी कुछ सोचा नहीं था,पर मैं महसूस तो बहुत कुछ करता था उसके लिए पर जिंदगी के कड़वे अनुभवों को सोचकर कुछ नहीं कहता था,पर वो जिस तरह से बात बात पर मुझ पर हक जमाती थी मुझे समझाने बैठ जाती थी उसकी यही बात मुझे पागल कर देती थी।

“मैं आ गई तेरे सारी समस्याओं का समाधान लेकर"अंतर ने मेरे कमरे में घुसते ही बाबा लोगों के जैसे मुद्रा बना कर कहा,रात के 12:30 बजे थे इस तरह एक लड़की का मेरे कमरे में घुसना बहुत अजीब सा था वैसे वो अक्सर चली आती थी हम दोनों के कमरे के बीच एक दरवाजा था जो मेरी तरफ़ से खुला रहता था उसके कहने पर ,वो आती तो दिन में थी उस से पर आज इतनी रात को आई मेरी समझ से बाहर था,“तू इस वक़्त क्या करने आई है यहाँ कोई सुनेगा न बेटा हम दोनों शहीद हो जायेंगे "मैने अपने स्वाभाविक डर से कहा,पर उसने अपने मुँह पर उंगली रखकर मुझे कुछ ऐसे चुप रहने का इशारा किया कि मैं एकदम से चुप हो गया और अनवरत एकटक उसे ही देखता रहा,उसकी सूरत हमेशा के जैसे निश्छल सी बच्चों जैसी आंखों की हरकतें और शायद मैं ही था जो इन आँखों को देख पाता था,

“ये देख मैं तेरे लिए क्या लाई हूँ"उसके हाथों में एक एमपीथ्री प्लयेर था जो बैटरी से चलता था।“मैंने तेरे लिये एक प्लेलिस्ट बनाई है सोने की प्लेलिस्ट, ऐसे गाने जिन्हें सुनकर तुझे प्यारी सी नींद आ जायेगी" उसने ये सब इतनी  मीठी  आवाज में कहा ना मैं तो जैसे पिघल कर मोम बन गया ,वो बिस्तर पर आ गयी और मुझे एकदम बच्चों जैसे अपनी बाहों में ले लिया, जैसे दादी अपने एक साल के पोते को अपनी बाहों में लेती है,जैसे कोई जानवर अपने शावक को सीने से लगाता है, मैं एकदम से चौंक गया था ,इसे क्या हो गया ये,कैसे कोई लड़की बिना किसी के कहे ऐसा कुछ कर सकती है, लेकिन उसकी बाहों में मैं मानो सब दुखों से सारी समस्याओं से सारी उलझनों से कोसो दूर चला गया,मैं खुद को बहुत हल्का महसूस कर रहा था,और उसने प्लेलिस्ट चला दी ,स्लो ट्रैक वाले कुछ सैड सांग्स थे,कुछ नेगी जी के गाने कुछ हिंदी के और कुछ पंजाबी, कुलमिलाकर आठ नौ गीत थे जो मुझे नींद के आगोश में धकेल रहे थे,अंतरा का ये सब करना अजीब था मेरे लिये लेकिन शायद वो मेरी सारी उलझनों को समझ गयी थी और उसने मेरी सारी समस्याओ को ,उलझनो को तनाव को अपने अंदर ले लिया था, मैं एकदम हल्का सा उड़ रहा था सब कुछ भूलकर आंखे बंद करके,ऐसे ही कुछ आधे घण्टे में मैं सो गया और ये नींद करीब करीब तीन साल बाद आई थी ऐसी प्यारी नींद ।

दूर चलिगे माना अब तू आसमान ह्वेगीईई
पर सूरत इथगा बिंगे जा दुरंग क्यांन ह्वेगीईई

अब ये  रोज का क्रम हो गया था हम दोनों  एकदूसरे की बाहों में सो  जाया करते थे,शायद हम दोंनो एक ही कश्ती पर सवार थे खुद से परेशान, हारे हुए से और एक दूसरे के सहारे चलने की कोशिश कर रहे थे।

“ओ मेरे भाई तू फिर गया यार चल अब काम भी करना है नही तो बॉस फिर सुना देगा” इस बार अरविंद ने कोई फब्ती नहीं कसी शायद वो भी समझ गया था कि आज किसी ज्यादा ही उलझन में हूँ मैं।

रात को जैसे ही घर पहुंचा फिर वहीं सब कुछ जो रोज होता हैं लेकिन मुझ में अजीब सी सिहरन थी,भले ही अंतरा आज साथ नही थी पर उसकी याद ने मुझे शायद फिर से जीने की याद दिला दी थी लोग कहते हैं किसी की याद आपको बर्बाद कर देती है पर उसकी तो याद भी जैसे मुझे फिर जिंदा कर रही थी,मैं सब कुछ फिर हल्का हल्का महसूस कर रहा था।उसकी हर चीज में अलग  थी चाहे वो याद हो या चाहे वो खुद।

आज मन बना लिया था,एक प्लेलिस्ट बनाने का, फ़ोन उठाया और वो सब गीत जोड़ लिए प्लेलिस्ट में ,जो अंतरा के थे,पर क्या ये प्लेलिस्ट उसके जैसे मुझे सुला पाएगी? या नहीं,? कुछ सवाल थे जरूर पर मैं जानता था इस बार जवाब मिलेगा जरूर मिलेगा।और इन सब से ऊपर एक सवाल जो बहुत जरूरी था कि मेरी सारी मुश्किल उलझन फिक्र दूर करने का जादू उसकी प्लेलिस्ट में था उस में खुद???

अभिषेक सेमवाल

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