उत्तराखन्ड का एक ऐसा मन्दिर जहाँ छिपा है कलियुग के अन्त का रहस्य!
उत्तराखंड हमेशा से ही देश दुनिया के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। ये राज्य पर्यटन की दृष्टि से दुनियाभर में अपनी अलग पहचान रखता है। प्राकृतिक छटाओं और सुंदरता से सरोबार ये उत्तर भारतीय राज्य भारत के सबसे सुंदर राज्यों में से एक है। यहां ऊंचे-ऊंचे हरेभरे पहाड़, हरियाली से सरोबार बुगयाल और कल कल बहती नदियां हमेशा से पर्यटकों का मन मोहती आई हैं। इसके अलावा यहां के धार्मिक स्थलों की सुंदरता और इनसे जुड़ी हुई पौराणिक कथाएं पुरी दुनिया को अपनी ओर खींच लाती है। इन तीर्थस्थानों से जुड़ी देवी देवताओं से संबंधित अनेक कथाएं और रहस्य दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं।
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में ऐसा ही एक रहस्यमयी मंदिर है जिसकी कहानी सुनकर हर किसी की आँखें खुली की खुली रह जाती है। ये मंदिर है पिथौरागढ़ में स्थित पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर। ये प्राचीन मंदिर समुद्र तल से 1,350 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और जो लोग प्रकृति और आध्यात्मिकता के रहस्यों को करीब से महसूस करना चाहते हैं उनके लिए ये स्थान किसी खजाने से कम नहीं है। इस गुफा मंदिर का हिन्दू धर्म के पुराणों में भी मिलता है। इस मंदिर से जुड़ी अनेक मान्यताएं, किवदंतियाँ पूरे विश्व में प्रचलित हैं। लोगों का तो यहाँ तक मानना है कि इस गुफा के अंदर दुनिया के खत्म होने के रहस्य छिपे हुए हैं। सच में ये गुफा मंदिर रहस्य और सुंदरता का अनूठा संगम पुरी दुनिया के सामने पेश करता है। सबसे खास बात ये है कि ये गुफा मंदिर जमीन से करीब 90 फीट नीचे है और इस मंदिर के अंदर जाने के लिए बेहद ही संकरें रास्तों से घुसकर जाना पड़ता है। यहाँ पर आने वाले पर्यटकों को, मंत्रमुग्ध कर देने वाले प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिकता से नजदीक से जुडने अवसर मिलता है। इस गुफा मंदिर में चूना पत्थर की चट्टानों पर लगातार रिसते हुए भूमिगत जल के कारण बहुत सी आकृतियां उभरी हुई हैं, जिन्हें स्थानीय लोग 33 कोटि(करोङ) देवी देवता मानते हैं। ये मंदिर भारत की संस्कृति और उल्लेखनीय दैवीय कथाओं का एक वसीयतनामा है।
ये गुफा मंदिर भगवान शिव की योगमाया स्वरूप को समर्पित है। हिन्दू धार्मिक ग्रंथ स्कंदपुराण के में पाताल भुवनेश्वर में भगवान शिव के निवास स्थान होने की बात कही गई है। कहते है कि कैलाश पर्वत पर भगवान शिव ध्यान करते थे और इस स्थान पर निवास करते थे। एक जनश्रुति में बताया गया है कि इसी स्थान पर सभी देव गण भगवान शिव की पूजा करते थे।
इस स्थान से जुड़ी एक प्रसिद्ध मान्यता है कि यहां पर भगवान गणेश का कटा हुआ सिर पत्थर की मूर्ति के रूप में रखा गया है। ये प्रसंग जुड़ा हुआ एक पौराणिक कथा से, जिसके अनुसार एक बार भगवान शिव ने क्रोध में आकर गणेश जी का सिर अपने त्रिशूल से उनकी धड़ से अलग कर दिया था। इस घटना माता पार्वती काफी क्रोधित हो गईं और उन्हीं के कहने पर भगवान शिव ने गणेश के धड़ पर हाथी का सिर लगाया था। लेकिन जो सिर उनके शरीर से कटकर अलग हो गया था, उसको ही भगवान शिव ने इस गुफा में मूर्ति के रूप में स्थापित कर दिया था। एक और मान्यता इस मूर्ति से जुड़ी है, कहते हैं कि मूर्ति के ऊपर एक पत्थर का 108 पंखुड़ियों वाला ब्रह्मकमल है और इस ब्रहमकमल से पानी की दिव्य बूंदें भगवान गणेश की मूर्ति पर लगातार गिरती रहती है। ये भी कहा जाता है कि इस पत्थर के ब्रहमकमल की स्थापना भी भगवान शिव ने ही की है।
पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर की खोज से जुड़ी मान्यताएं
पाताल भुवनेश्वर नाम दो संस्कृत के शब्दों - पाताल और भुवनेश्वर (भगवान शिव का दूसरा नाम) से लिया गया है। हिन्दू धर्म के 18 पुराणों में से एक स्कन्द पुराण ग्रन्थ के मानस खण्ड में एक गुफ़ा का वर्णन कुछ इस प्रकार से किया गया है-
शृण्यवन्तु मनयः सर्वे पापहरं नणाभ् स्मराणत्
स्पर्च्चनादेव,
पूजनात् किं ब्रवीम्यहम् सरयू रामयोर्मध्ये पातालभुवनेश्वरः
अर्थात् व्यास जी कहते हैं कि मैं ऐसे स्थान का वर्णन कर रहा हूँ जिसका पूजन करने के सम्बन्ध में क्या कहना, जिसका स्मरण और स्पर्श मात्र करने से ही सब पाप नष्ट हो जाते हैं वो स्थान सरयू और रामगंगा के मध्य पाताल भुवनेश्वर में है।
जैसा कि विभिन्न पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है, इस स्थान की खोज करने वाले प्रथम मनुष्य थे त्रेता युग में अयोध्या के सूर्यवंशी राजा ऋतुपर्णा। इस कथा के अनुसार वो यहाँ पर नागों के राजा अधिशेष से मिले थे, अधिशेष ही उन्हें इस गुफा के अंदर ले गए थे। गुफा के अंदर पहुंचकर राजा ऋतुपर्णा ने भगवान शिव और अन्य देवों के दर्शन किये थे।
एक अन्य मान्यता जुड़ी है द्वापर युग से, कहा जाता है कि द्वापर युग में पांडवों द्वारा इस गुफा की खोज की गई। गुफा मंदिर का निर्माण पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान किया था। जब पांडव, कौरवों से छिप कर भाग रहे थे, तब वो लोग इस स्थान पर रुके थे।
कलियुग में पाताल भुवनेश्वर की खोज आदि जगतगुरु शंकराचार्य ने 822 ई. के आस-पास की थी। उन्होंने यहाँ पर एक तांबे के शिव लिंग की भी स्थापना की थी। इसके बाद कत्यूरी एवं चंद राजाओ ने इस स्थान के पुनर्निर्माण और जीर्णोद्धार करवाने का काम किया।
पाताल भुवनेश्वर गुफा और कलियुग के अंत का रहस्य
इस गुफा मंदिर से जुड़ी एक अनोखी मान्यता और है, इस
जनश्रुति के अनुसार इस दुनिया का अंत भी इसी गुफा से जुड़ा है। इस गुफा में चार पत्थर के खंभे स्थापित
हैं। ये खंभे चारों युगों के प्रतीक माने जाते हैं। सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग
और कलयुग से जुड़े ये चार पत्थरों के खम्भे यहाँ
पर चार द्वारों के रूप में है, जिनके
नाम क्रमश: मोक्षद्वार, पापद्वार, रणद्वार, धर्मद्वार
उल्लेखित हैं। कहते हैं इनमें से 2 द्वार
बंद हो चुके हैं। इनमें से मोक्षद्वार और धर्मद्वार से अभी भी इस स्थान पर हैं। धर्मद्वार को
कलियुग का प्रतीक माना जाता है। इस खंभे के बारे में अनोखी बात ये है कि ये पत्थर
लगातार ऊपर उठ रहा है। इस खंभे से जुड़ी ये मान्यता है कि जब यह पत्थर गुफा की छत तक पहुँच जाएगा
उस दिन कलियुग का अंत हो जाएगा।
दुनिया के खत्म होने के बारे में एक और मान्यता है। यहाँ पर एक पत्थर की शिवलिंग जैसी आकृति है जिसका तेजी से आकार बढ़ रहा है, कहते हैं कि जब यह शिवलिंग गुफा की छत से टकराएगा तो दुनिया खत्म हो जाएगी।
पाताल भुवनेश्वर गुफा के अंदर क्या है?
पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर का मुख्य द्वार बहुत संकरा है, इस द्वार से एक समय में केवल एक ही व्यक्ति अंदर जा सकता है। गुफा में प्रवेश करते ही ठंडे और नम वातावरण को महसूस किया जा सकता है, जिसका गुफा की छत से भूमिगत जल का लगातार गिरना है।
लोगों का मानना है कि गुफा के अंदर शेष नाग के आकृति वाला पत्थर है। जो कि देखने में ऐसा लगता है कि शेषनाग ने पृथ्वी का भार अपने कंधे पर उठा रखा है। पतले से रास्ते से नीचे जाने पर हुए जमीन से लगभग 8 से 10 फीट नीचे गुफा की दीवारों पर पनि के कारण बनी आकृतियाँ नजर आती है, लोगों का मानना है कि ये देवी देवताओं की मूर्तियां हैं। कहते हैं कि गुफा के अंदर ऊपर से नीचे की ओर आती शिवजी की विशाल जटाओं के जैसी एक संरचना है। इस संरचना को भगवान शिव की जटाओं का रूप माना जात है। गुफा लगभग 160 मीटर लंबी है। गुफा में एक स्थान पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश(पाताल भुवनेश्वर) के एक साथ दर्शन होते हैं।
पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर के बारे में एक अन्य जनश्रुति के अनुसार गुफा में केदारनाथ, बदरीनाथ और अमरनाथ तीनों के साथ दर्शन होते हैं।
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