उधार खाता

आज का दिन बड़ा ही उबाऊ और आलस भरा रहा था,दिन भर मैंने कमरे में लेटे लेटे ही वक़्त काट लिया था। जैसे ही घड़ी ने शाम के साढ़े पांच बजाये मेरे भीतर का पहाड़ी मनुष जाग गया,मै उठा और हाथ मुँह धोकर पहुंच गया आंटी की दुकान पर चाय पीने..... आंटी की दुकान के बारे में बता दूँ की ये दुकान सिर्फ नाम से आंटी की दुकान है, लेकिन यहाँ पर आकर आपको सारी दुनिया की खबरें ,ढेर सारा ज्ञान, और सोशलायज़िंग का पूरा मसाला मिल जायेगा और साथ में आंटी की तीखी जबान से दिल चीर देने वाले नश्तर और मीठी चाय और नमकीन समोसे ,तो ये मेरे जैसे भूले भटकों और दर्द में कराहने वालों के लिए औषधालय से कम नहीं था यहाँ पर आकर कुछ देर के लिए ही सही मैं सब कुछ भूल कर दुनिया भर की बकवास और बकवास मे छुपी बहुत सारी चटपटी बातों मे खो जाता था। आज भी यही सब हो रहा था,जैसा की अक्सर ऐसी चाय की दुकानों में होता ही है, भांति भांति प्रकार के किरदार अपना एक्ट कर रहे थे,ऐसे में एक हमारे एक मित्र दुकान मे आ पहुंचे, जो कि एक तरह से हमारे क्लासमेट भी थे।वो उम्र में मुझ से करीब दस साल बड़े थे, अब वो किस तरह मेरे क्लासमेट थे ये मैं आप लोगों की कल्पना पर छोड़ता हूँ ,जैसा सोचना हो आप लोग अपने हिसाब से सोच लीजिये तो अब बातचीत का दौर शुरु हो गया वो भी बिल्कुल एक घनिष्ट मित्र की तरह चाय लेकर मेरे साथ बैठ गये वैसे मैं बिल्कुल उन्हें मित्र नहीं मानता था,उनका पता नहीं, मै तो उन्हें भैया कहकर बुलाता था।वो अपनी वीर गाथाओं को बड़े शान से सुना रहे थे और जैसा की मेरा टैलेंट है मैं सुनने में बड़ा अच्छा हूँ तो मैं उनकी बातें सुने जा रहा था। तभी एक अप्रत्याशित घटना घटी जो कि कुछ हद तक देखने सुनने वालों के लिए नई मालूम हो रही थी वो ये कि हॉस्टल का एक लड़का आंटी जी के साथ उलझ गया वो भी हिसाब पर, और जबकि उसका पिछला उधार करीब नौ सौ रूपए बकाया था, और वो लगातर बहस बाजी किये जा रहा था कि उसका हिसाब कम है कम है। सब लोग इस प्रकरण का अपने अपने ढंग से आनंद उठा रहे थे कि इतने में हमारे मित्र हमारी तरफ मुड़े और उनके देखने के अंदाज से मैं समझ गया की अब अच्छा ज्ञान मिलने वाला है तो मै भी तैयार हो गया,अब जैसा की मुझे अंदेशा था वो बोले- “इन लड़कों को तो कोई सेंस ही नहीं हैं, किस तरह रुपया कमाया जाता है, दुकान की कई सारी चीजे कई सारे खर्चे होते हैं, और ये सब के सब उधार के पन्ने रजिस्टरो में भरवाए जा रहे हैं, अब इन लोगों को कौन समझाये कि ये आंटी को अपनी दुकान देखनी है अपना घर संभालना है बच्चों को देखना है और एक तुम लोग हो फ्री फोकट में अपनी गठरी भर कर यहां से चल देते हो, मैं तुम्हें सच कह रहा हूँ दोस्त मेरा बस चले तो मैं इन जैसे लोंडो को तो अपने आस पास फटकने ना दूँ कभी भी।" अब मित्रवर आंटी जी की तरफ मुख़ातिब हुए और तड़ाक से बोले-“अरे आंटी अपने भी इन लोगों को सर पर चढ़ा कर रखा है क्यों इनको इतना मुँह लगाती हो,तुम्हारा ही नुकसान होगा ना इसमें" आंटी ने सिर्फ अपना सर हिलाकर इस बात को आगे बढ़ने से रोक लिया और अपने समोसे तलने मे लीन हो गई शायद उनके लिए इस ज्ञान से ज्यादा अपना काम जरूरी था। अब मित्रवर की बातें मेरी बस के बाहर होने लगी थी तो मैनें भी सोच लिया चलते हैं जैसा कि मेरी आदत है मैं घुमा फिरा कर बात नहीं करता मैंने सीधे कहा-“आप बैठिए मेरी चाय खत्म हो गयी है मैं चलता हूँ।" जैसे ही मैं निकला मेरा एक फोन आ गया अब मैंने रोड पर चलने से बेहतर दुकान के दरवाजे पर ही इसे निपटाना चाहा ,और मैं बात करने मशगूल हो गया,इतने में मित्रवर उठे और चाय का गिलास रखा मैं समझ गया अब वो भी जाने वाले हैं मैं मुँह दूसरी तरफ किये फोन् पर बातें करता रहा इतने में मेरे कानों में ये शब्द पड़े “आंटी जी पैसे कल दूँगा, आप रजिस्टर में नोट कर लीजिये"। ©सेमवाल जी नवोदय वाले

Comments

  1. Wah semwal ji kya likte ho. Bhut hi shaandar

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  3. शानदार सेमवाल जी 'नवोदय वाले'

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

क्या विकास की राह चलते-चलते हम विनाश के द्वार पर खड़े हैं?

चाय की प्याली

जनवरी की बारिश